रतजगे
डॉ.अभिज्ञात की ग़ज़लें
Sunday, 7 November 2010
सारी दुनिया
गज़ल
सारी दुनिया संवारनी है मुझे ।।
क्योंकि वो तुझपे वारनी है मुझे।।
चांद को अपनी हथेली में लेकर
कितनी ही शब गुज़ारनी है मुझे ॥
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