Saturday 12 April 2014

कुछ अशआर

मैं पता अपना उसके घर का कहूं
क्या ख़बर उसका ठिकाना क्या है।।

मेरे दिल तक पहुंच नहीं पाया
उसका पैग़ाम रवाना क्या है।।

एक उलझन सी बनी रहती है
मिलने जुलने का बहाना क्या है।।

Saturday 22 March 2014

कोई हममें है अजनबी जैसा

कोई हममें है अजनबी जैसा
देता रहता है रोशनी जैसा

तेरे लब हिलते हैं तो झरता है
कुछ तो नमकीन चाशनी जैसा

दोस्ती उसकी दुश्मनी जैसी
पर है अंदाज दोस्ती जैसा

आजकल बूढ़ा मैं शायद हो चला हूं

आजकल तो ध्यान बच्चे रख रहे हैं
आजकल बूढ़ा मैं शायद हो चला हूं।

आज अरमान अपने

आज अरमान अपने रफू कर रहा हूं।
मै फिर से तेरी जूस्तजू कर रहा हूं।

बहुत साल बीते यही कहते कहते
तुझ भूलना अब शुरू कर रहा हूं।

ये बेरंग सी है मेरी जिस्त तन्हा
मैं तेरे लिए रंगो बू कर रहा हूं।

किसी शाख पर तीरगी रह न जाये
मैं रोशन दीये चार-सू कर रहा हूं।

मेरे रकीब

आजा कर दूं मैं तेरे हौसले की आफजाई
मेरे रकीब तुझे थोड़ी थकन लगती है।