रतजगे
डॉ.अभिज्ञात की ग़ज़लें
Saturday, 23 June 2012
कई पंछी निकल के उड़ते हैं
कई पंछी निकल के उड़ते हैं
मैं जब भी मन का पिंजरा खोलता हूं
शुबहा करते है अपने कद पे सभी
कभी अपना वज़न जो तोलता हूं
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