Tuesday, 29 September 2009
दर्द हमारा..
दूर से ही तू मुझको..
सौ बार सरे-राह..
कुछ अशआर -बने/अधबने/अनबने
तूने इल्ज़ाम..
हो खुशगवार सा मौसम ..
आपकी इन चितवनों में..
बेमुरव्वत कर रहा है..
Monday, 28 September 2009
मेरी पुरनम कहानियां
तुम्हें देख मुझको ..
तू मुझे चाह ले ..
फिर गली से..
और जो भी हो..
किसी सूरत भी..
तीरगी का है सफ़र ..
बातों-बातों ही..
ख़्वाब जैसा ही..
दिल में सौ तोहमतें..
देकर मिलने का..
ऐब सारे छिपा के ..
दोनों जहां तुम्हीं में ..
और कोई तू चाहे..
जीने मरने के सहारे..
तुझको पाने की..
फिर भी चाहे से सब कुछ हुआ नहीं करता।।
जो मुझसे खेल रहा है वो इक फ़रिश्ता है
वो मेरे ख़्वाबों को मुझसे ज़ुदा नहीं करता।।
मैं उसके साथ चला हूं ख़ता मेरी ये है
जो समझता है कि कोई ख़ता नहीं करता।।
हुस्नवाला है तो मग़रूर भी होगा बेशक़
कभी-कभार क्या, अक्सर वफ़ा नहीं करता।।
कितना खोया है अभी और कितना खोयेगा
दिल के सौदे में तो कोई नफ़ा नहीं करता।।
अपना लिखता है मुकद्दर वो अपने हाथों से
रुख हवाओं का जो भी पता नहीं करता।।
Sunday, 27 September 2009
कोई मुश्क़िल तो नहीं..
अपने को खो के मैं..
चंद अफ़सुर्दा ..
तूने ली है ज़रूर अंगड़ाई..
तूने ली है ज़रूर अंगड़ाई॥
तेरी खुशबू लिए हवा आई॥
इश्क़ वालों से दूर ही रहना
नाप लेते हैं दिल की गहराई॥
शोर खामोश सा कर देता है
कितनी बातें करे है तन्हाई॥
फ़क्त किरदार बदल जाते हैं
सारी बातें यहां कि आजमाई॥
ख़्वाब का मुझको इन्तज़ार रहा
नींद मुझको न रात भर आई॥
वो मुझसे खेलेगा..
वो मुझसे खेलेगा, नाकाम करके छोड़ेगा॥
नया खिलौना कोई फिर से हाथ ले लेगा॥
अभी यक़ीं न होगा बाद मेरे दुनिया में
तेरा ठिकाना कोई मेरे घर से पूछेगा॥
कोई अफ़सानानिगारी नहीं कसम ले लो
मैं बुत बना हूं कि वो शख़्स मुझे छू लेगा॥
नहीं वो ग़म की तासीर से वाकिफ़ बेशक़
कैसे मुमकिन है कोई ज़ार-ज़ार रो लेगा॥
मैंने ये सोच के दस्तक ही नहीं दी दर पे
मेरी गली की तरफ़ खिड़कियां वो खोलेगा॥
इश्क़ तुमसे है..
इश्क़ तुमसे है छिपाना क्या है॥
लाख फिर रोके ज़माना क्या है॥
जिसपे कुछ नाम लिखें हैं जुड़वां
रिश्ता उस दर से पुराना क्या है॥
दो घड़ी मिल के कहीं खो जाना
साथ इस तरह निभाना क्या है॥
आ कभी देखने की ख़ातिर ही
अब तेरे बिन ये दीवाना क्या है॥
उसकी तिरछी नज़र से सीखे कोई
तीर कैसा हो, निशाना क्या है
मां के साये में रह लिया जो भी
जानता है कि ख़जाना क्या है॥
फूल जैसा है..
फूल जैसा है कुछ महका हुआ॥
तू नहीं है पर तेरा धोखा हुआ॥
जीतने वाला भी रोता है बहुत
ये मुहब्बत का क़िला ऐसा हुआ॥
हम ज़ुदा हैं पर ज़ुदा इतने नहीं
मेरी मंज़िल अब तेरा रस्ता हुआ॥
मेरा इक क़िरदार था गुम हो गया
जब तुम्हारे हाथ का सिक्का हुआ॥
वो न जाने कैसे सच कहकर गया
चाल से लगता नहीं बहका हुआ॥
हर तरफ़ दीवार सी है और तू
इक दरीचे की तरह खुलता हुआ॥
इसकी उसकी बात सुन लूं पहले मैं
अपनी भी कहूंगा जो मौका हुआ॥