Tuesday, 29 September 2009

बेमुरव्वत कर रहा है..

बेमुरव्वत कर रहा है आज जो सारे हिसाब।।
दोस्त होगा, दोस्तों का होता है यूं ही ज़वाब।।

है ज़रा सी पै मेरी फ़ितरत में तू मत माफ़ कर
तोड़ देते हैं बनाने वाले ही बर्तन ख़राब।।

और झुकना है ज़रा सा और झुकना है ज़रा
अब तो रहने दे के मुझमें ख़त्म होने को है आब।।

मुझको जो बख़्शा है मालिक ने उसी का शुक्रिया
पेट में फ़ाकाक़शी तो चेहरे पे थोड़ा रुआब।।

आईने की अब गवाही झूठ की तहरीर है
देखने वालों ने देखा था कभी मेरा शबाब।।

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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