रतजगे
डॉ.अभिज्ञात की ग़ज़लें
Sunday, 27 September 2009
कोई मुश्क़िल तो नहीं..
कोई मुश्क़िल तो नहीं यूं करना।।
उनसे चुप रह के गुफ़्तगू करना।।
उसको मैं देखकर ही जी लूंगा
उसको तुम मेरे रूबरू करना।।
तुम मुझे आज़मा लो जी भर के
फिर मैं तुमसे जो भी कहूं करना।।
सदा देती हैं तमन्नाएं मुझे
याद मैं कैसे रोक दूं करना।।
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