Sunday 27 September 2009

चंद अफ़सुर्दा ..

चंद अफ़सुर्दा हिसाबों की सही।।
बात टूटे हुए ख़्वाबों की सही॥

जिसमें ख़त आजकल नहीं आता
मेरे उन भेजे क़िताबों की सही।।

अपने रिश्ते में तो महक न रही
खुशबुएं सुर्ख गुलाबों की सही।।

मेरी हसरत को मिटाने वाले
तेरे मासूम ज़वाबों की सही।।

जी में आता है इन्तज़ार करूं
रुत न लौटेगी बहारों की सही।।

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