देकर मिलने का भरोसा उसने।।
मुझको छोड़ा न कहीं का उसने।।
दूरियां और बढ़ा दी गोया
फ़ासला रख के ज़रा सा उसने।।
मेरे किरदार-ए-वफ़ा को लेकर
सबको दिखाया तमाशा उसने।।
हमने दिल रक्खा था लुटा बैठे
हुस्न पाया है भला सा उसने।।
मेरे आगे वो बोलता ही नहीं
सबसे क्या-क्या नहीं कहा उसने।।
ख़त मुहब्बत के रोज़ लिखता था
उसपे लिक्खा नहीं पता उसने।।
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