रतजगे
डॉ.अभिज्ञात की ग़ज़लें
Monday, 28 September 2009
फिर गली से..
फिर गली से वो गुलबदन निकले।।
लूटने दिल को राहजन निकले।।
तेरी नज़रें छिपीं न हुस्न छिपा
झीने-झीने ये पैरहन निकले।।
फिर किसी क़त्ल का इरादा है
बन के मासूम जानेमन निकले।।
जान देते हैं जिस दुपट्टे पर
मेरी क़िस्मत अगर कफ़न निकले।।
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