Tuesday, 29 September 2009

दूर से ही तू मुझको..

दूर से ही तू मुझको शोलाबदन लगती है।।
मार डालेगी मुझको तेरी छुअन लगती है।।

मैं न कुछ बोल कर इल्ज़ाम अपने सर लूंगा
तू ही खुद सोच बता मेरी कौन लगती है।।

अपने बारे में यही बात बता दे मुझको
तू कोई हूर है या उसका बहन लगती है।।

उस तरफ तेरा मकां है या ख़ुदा रहता है
जिस तरफ़ मुझको उम्मीदों की किरन लगती है।।

घर था पुश्तैनी जिसे बाप ने गिरवी रक्खा
बेटी उसकी भी खुशहाल दुल्हन लगती है।।

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