रतजगे
डॉ.अभिज्ञात की ग़ज़लें
Monday, 28 September 2009
और जो भी हो..
और जो भी हो तू हसरत लिखना।।
कहीं मुझको न आज ख़त लिखना।।
नाम मेरा ना कहीं लिख बैठो
कभी बेसाख़्ता ही मत लिखना।।
अफ़रा-तफ़री है ज़माने में बहुत
इसमें आसां नहीं फ़ुरसत लिखना।।
इस हथेली पे लिख चुका लिक्खा
तू न फिर से मेरी किस्मत लिखना।।
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