Monday, 28 September 2009

और जो भी हो..

और जो भी हो तू हसरत लिखना।।
कहीं मुझको न आज ख़त लिखना।।

नाम मेरा ना कहीं लिख बैठो
कभी बेसाख़्ता ही मत लिखना।।

अफ़रा-तफ़री है ज़माने में बहुत
इसमें आसां नहीं फ़ुरसत लिखना।।

इस हथेली पे लिख चुका लिक्खा
तू न फिर से मेरी किस्मत लिखना।।

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