Monday 28 September 2009

तू मुझे चाह ले ..

तू मुझे चाह ले संवर जाऊं।।
या कहे टूट कर बिखर जाऊं।।

रास्ता कौन मेरा तकता है
लौटकर किसलिए मैं घर जाऊं।।

तू सफ़र में हो तो ये मुमकिन है
मैं संग-ए-मील सा गुज़र जाऊं।।

जो न पूछे तो तेरा ज़िक्र करूं
कोई पूछे तो मैं मुकर जाऊं।।

इश्क़ का मर्ज़ लाइलाजी है
चाहे अमृत पिऊं, ज़हर खाऊं।।

No comments:

Post a Comment