रतजगे
डॉ.अभिज्ञात की ग़ज़लें
Monday, 28 September 2009
जीने मरने के सहारे..
जीने मरने के सहारे और हैं।।
हम नहीं हैं तुम्हारे और हैं।।
आपने चाहा ये केवल ख़्वाब था
नींद टूटी तो नज़ारे और हैं।।
इश्क़ में हां कहा या ना कहा
ये दरीचें हैं दीवारें और हैं।।
सब ही दामन में तेरे मुझको दिखे
झूठ कहते हैं सितारे और हैं।।
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