Tuesday 29 September 2009

कुछ अशआर -बने/अधबने/अनबने

1
वो तो कहता ही नहीं हाले दिल सुनाने को
ज़िन्दगी छोड़ी पड़ेगी मेरे अफ़साने को ।
2
ये बात सच है कि मैं महफ़िलों में रहता हूं
चिराग़ बन के मगर बार-बार जलता हूं।
3
पास तुम हो तो नेमतें क्या हैं
और हम रब से चाहते क्या हैं।
4
इक ज़रा दी देर पे हंगामा बरपा कर दिया
मुझसे मिलने की तेरी बेताबियां देखा किये।
5
हज़ार बरस की हम आशनाई कर बैठे
ग़ैर के दर से जो उठ्ठे तो आंख भर आयी।
6
निवाला हलक के नीचे कहां उतरता है
बरतन बेच के जब रोटियां घर आने लगीं।

7
उफ़ के कितना हंसी है हुस्न तेरा
छू लूं तुझको ग़ुनाह कर बैठूं।
अब तबाही का मुझको खौफ़ नहीं
ख़ुद को तुझपे तबाह कर बैठूं।
8
है इक ख़ता जो मैं अरसे से बार-बार करूं
मैं तेरे ख़्वाब तराशूं और इंतज़ार करूं।
9
तू परिन्दों का मुझको घर कह ले।
या के टूटा हुआ शजर कह ले।
इक बड़ी दास्तां कही मैंने
उसको तू छोटी सी बहर कह ले।
10
वे जिनपे यक़ीं करके कामयाब हो गये
मैंने वो सारी दास्तां ही झूठ कही है।
11
कोई हममें है अजनबी जैसा।।
देता रहता है रोशनी जैसा।।

सबके सब मांग रहे हैं रब से
कोई मिल जाये आपही जैसा।।
12
कहने का जो माने है अन्दाज़ बता देगा।
रिश्ता ही कुछ ऐसा है क्या ख़ाक छिपा लेगा।
13
मुझको आया अभी बुलाना नहीं।
ख़्वाब की तरह लौट जाना नहीं।
14
मैं अरमां अपने रफ़ू कर रहा हूं।।
उसी के लिए गुफ्तगू कर रहा हूं।।
तुझे बारहा याद करता हूं यूं के
तुझे भूलना अब शुरू कर रहा हूं।।
15
वो जो पूछे तो कहूंगा मैं हाले दिल अपना।।
और न पूछे तो रखूंगा सम्भाले दिल अपना।।
एक सूखे हुए पत्ते सा थरथराता हुआ
किसके-किसके मैं करूंगा हवाले दिल अपना।।
16
मैं पूछता हूं मजमूं तेरा ख़त दिखा-दिखा कर
जो लिखी नहीं है उसमें, वही रात जाननी है।
17
आईना हूं मैं जिसपे हर इम्तेहां में
वो पत्थर उठाकर के मारा करेंगे।
18
मेरे ख़्वाबों में इक शख़्स कई बरसों से
रह रहा यूं के हक़ीकत में रह रहा कोई।
19
कभी ना उड़ सका मैं लाख परिन्दों में रहा।।
ज़रा सी नीड़ की चाहत में बरगदों में रहा।।
किसी का बन के रहूं यह नहीं हुआ क्योंकि
मैं तुझसे दूर भी रहकर तेरी हदों में रहा।।
20
उसकी सर्दी की ज़रूरत था मैं
फेंक देगा कभी कम्बल की तरह।
21
नक्शे-पा मेरे सहर के बाद आयेंगे नज़र
शब जहां मैंने गुज़ारी इक सड़क जाने को है।
22
किस अन्दाज़ से किसने-किसे छुआ होगा।।
ये जानता हूं अन्धेरे में क्या हुआ होगा।।

गीत जो गा रहा मछली की आज़ादी के
शर्तिया ज़ेब में उसके ही केंचुआ होगा।।

1 comment:

  1. तू परिन्दों का मुझको घर कह ले।
    या के टूटा हुआ शजर कह ले।
    इक बड़ी दास्तां कही मैंने
    उसको तू छोटी सी बहर कह ले।
    aapki shayri padtey hue apni ek line yad aa gai
    main hoon apney virudh ek satat yudh

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