Saturday 12 April 2014

कुछ अशआर

मैं पता अपना उसके घर का कहूं
क्या ख़बर उसका ठिकाना क्या है।।

मेरे दिल तक पहुंच नहीं पाया
उसका पैग़ाम रवाना क्या है।।

एक उलझन सी बनी रहती है
मिलने जुलने का बहाना क्या है।।

Saturday 22 March 2014

कोई हममें है अजनबी जैसा

कोई हममें है अजनबी जैसा
देता रहता है रोशनी जैसा

तेरे लब हिलते हैं तो झरता है
कुछ तो नमकीन चाशनी जैसा

दोस्ती उसकी दुश्मनी जैसी
पर है अंदाज दोस्ती जैसा

आजकल बूढ़ा मैं शायद हो चला हूं

आजकल तो ध्यान बच्चे रख रहे हैं
आजकल बूढ़ा मैं शायद हो चला हूं।

आज अरमान अपने

आज अरमान अपने रफू कर रहा हूं।
मै फिर से तेरी जूस्तजू कर रहा हूं।

बहुत साल बीते यही कहते कहते
तुझ भूलना अब शुरू कर रहा हूं।

ये बेरंग सी है मेरी जिस्त तन्हा
मैं तेरे लिए रंगो बू कर रहा हूं।

किसी शाख पर तीरगी रह न जाये
मैं रोशन दीये चार-सू कर रहा हूं।

मेरे रकीब

आजा कर दूं मैं तेरे हौसले की आफजाई
मेरे रकीब तुझे थोड़ी थकन लगती है।

Monday 22 October 2012

अब तो बांहों में उठा ले कि थकन लगती है..


.यह रचना पहले मेरी स्वतंत्र ग़ज़ल थी फिर इसे फिल्मकार अरिंदम समाद्दार की फिल्म 'मंज़िल अपनी अपनी' के लिए युगलगीत के तौर पर विकसित किया। फिलहाल उन्होंने इसके निर्माण की योजना को टाल दिया है।
पुरुषः
दूर से ही तू मुझे शोलाबदन लगती है।
मार डालेगी मुझे तेरी छुअन लगती है।
स्त्रीः
तू किसी और किसी और के क़रीब न जा
ऐसी हरकत से मुझे तीखी जलन लगती है।
पुरुषः
इस जह़ां की नहीं लगती मुझे सूरत तेरी
तू कोई हूर या फिर उसकी बहन लगती है।
स्त्रीः
कितने जन्मों से तुझे खोजती फिरी हूं मैं
अब तो बाहों में उठा ले कि थकन लगती है।
पुरुषः
तू मेरा इश्क़ है या जान या जहां मेरी
तू ही ख़ुद मुझको बता मेरी कौन लगती है।
स्त्रीः
बदली-बदली सी फ़िजाओं में है खुशबू तारी
छू के आयी है तुझे आज पवन लगती है।
पुरुषः
मेरे सीने में उतर आते हैं खंज़र कितने
जो तेरे पांव में हल्की सी चुभन लगती है।
स्त्रीः
जो न जलती है कभी और न बुझ पाती है
ऐसी कुछ खास मुहब्बत की अगन लगती है।

Tuesday 2 October 2012

बुजुर्गों की हंसी


मुझे उस घर के बच्चों के ठहाके तक नहीं भाते
के जिस घर से बुजुर्गों की हंसी का वास्ता ना हो।

ये कुनबा भी मेरा है


घर के आगे बिल्ली, कुत्तों औ चिड़ियों का डेरा ह।
जबसे घर में मां आयी है, ये कुनबा भी मेरा है।

Saturday 23 June 2012

कई पंछी निकल के उड़ते हैं

कई पंछी निकल के उड़ते हैं
मैं जब भी मन का पिंजरा खोलता हूं



शुबहा करते है अपने कद पे सभी
कभी अपना वज़न जो तोलता हूं

Tuesday 12 June 2012

घाटे के भी सौदों में


घाटे के भी सौदों में है मैने कमाई की
दिल तोड़ दिया तुमने कुछ शेर निकल आये।

Thursday 12 April 2012

तेरे अश्कों से भींगे ख़त

घने अंधेरे में भी रोशन-रोशन मेरी शब

तेरे अश्कों से भींगे ख़त जलते रहते हैं।

गुल्लख नहीं तोड़ी जाती

हज़ारों सपनों का सबसे बड़ा खजाना है

मुझसे औलाद की गुल्लख नहीं तोड़ी जाती।

Sunday 7 November 2010

सारी दुनिया

गज़ल
सारी दुनिया संवारनी है मुझे ।।
क्योंकि वो तुझपे वारनी है मुझे।।

चांद को अपनी हथेली में लेकर
कितनी ही शब गुज़ारनी है मुझे ॥

Tuesday 29 September 2009

दर्द हमारा..

दर्द हमारा कोई बेदर्दी हंसकर ऐसे तोले ना।।
इतना भी आसान नहीं है और किसी का हो लेना।।

इश्क़ हमारा अब तक ज़िन्दा है कितने अफ़सानों में
मैं अब उससे खफ़ा-खफ़ा हूं वो भी मुझसे बोले ना।।

हुस्न में उसके यकसां जादू पास से देखा है मैंने
शर्म से गड़ जायेंगी घटाएं, जुल्फ़ वो अपनी खोले ना।।

बीते दिनों का लम्हा कोई दस्तक दे तो यूं करना
मैं अपने आंसू पोछूं, तुम पलकें अपनी भिगो लेना।।

दूर से ही तू मुझको..

दूर से ही तू मुझको शोलाबदन लगती है।।
मार डालेगी मुझको तेरी छुअन लगती है।।

मैं न कुछ बोल कर इल्ज़ाम अपने सर लूंगा
तू ही खुद सोच बता मेरी कौन लगती है।।

अपने बारे में यही बात बता दे मुझको
तू कोई हूर है या उसका बहन लगती है।।

उस तरफ तेरा मकां है या ख़ुदा रहता है
जिस तरफ़ मुझको उम्मीदों की किरन लगती है।।

घर था पुश्तैनी जिसे बाप ने गिरवी रक्खा
बेटी उसकी भी खुशहाल दुल्हन लगती है।।

सौ बार सरे-राह..

सौ बार सरे-राह सफ़र छोड़ना पड़ा।।
मंज़िल पे हर परिन्द को पर छोड़ना पड़ा।।

पुश्तैनी घर की जब मेरे दहलीज़ गिर पड़ी
घर को बचाने के लिए घर छोड़ना पड़ा।।

दहशत के लिए हो रहे हैं हमले चारसू
हमलों के ही ज़वाब में डर छोड़ना पड़ा।।

अब तो मिला जो काम वही रास आ गया
जब बिक नहीं सका तो हुनर छोड़ना पड़ा।।

इनसान ने डंसने की रवायत संभाल ली
सांपों को शर्मा आयी जहर छोड़ना पड़ा।।

कुछ अशआर -बने/अधबने/अनबने

1
वो तो कहता ही नहीं हाले दिल सुनाने को
ज़िन्दगी छोड़ी पड़ेगी मेरे अफ़साने को ।
2
ये बात सच है कि मैं महफ़िलों में रहता हूं
चिराग़ बन के मगर बार-बार जलता हूं।
3
पास तुम हो तो नेमतें क्या हैं
और हम रब से चाहते क्या हैं।
4
इक ज़रा दी देर पे हंगामा बरपा कर दिया
मुझसे मिलने की तेरी बेताबियां देखा किये।
5
हज़ार बरस की हम आशनाई कर बैठे
ग़ैर के दर से जो उठ्ठे तो आंख भर आयी।
6
निवाला हलक के नीचे कहां उतरता है
बरतन बेच के जब रोटियां घर आने लगीं।

7
उफ़ के कितना हंसी है हुस्न तेरा
छू लूं तुझको ग़ुनाह कर बैठूं।
अब तबाही का मुझको खौफ़ नहीं
ख़ुद को तुझपे तबाह कर बैठूं।
8
है इक ख़ता जो मैं अरसे से बार-बार करूं
मैं तेरे ख़्वाब तराशूं और इंतज़ार करूं।
9
तू परिन्दों का मुझको घर कह ले।
या के टूटा हुआ शजर कह ले।
इक बड़ी दास्तां कही मैंने
उसको तू छोटी सी बहर कह ले।
10
वे जिनपे यक़ीं करके कामयाब हो गये
मैंने वो सारी दास्तां ही झूठ कही है।
11
कोई हममें है अजनबी जैसा।।
देता रहता है रोशनी जैसा।।

सबके सब मांग रहे हैं रब से
कोई मिल जाये आपही जैसा।।
12
कहने का जो माने है अन्दाज़ बता देगा।
रिश्ता ही कुछ ऐसा है क्या ख़ाक छिपा लेगा।
13
मुझको आया अभी बुलाना नहीं।
ख़्वाब की तरह लौट जाना नहीं।
14
मैं अरमां अपने रफ़ू कर रहा हूं।।
उसी के लिए गुफ्तगू कर रहा हूं।।
तुझे बारहा याद करता हूं यूं के
तुझे भूलना अब शुरू कर रहा हूं।।
15
वो जो पूछे तो कहूंगा मैं हाले दिल अपना।।
और न पूछे तो रखूंगा सम्भाले दिल अपना।।
एक सूखे हुए पत्ते सा थरथराता हुआ
किसके-किसके मैं करूंगा हवाले दिल अपना।।
16
मैं पूछता हूं मजमूं तेरा ख़त दिखा-दिखा कर
जो लिखी नहीं है उसमें, वही रात जाननी है।
17
आईना हूं मैं जिसपे हर इम्तेहां में
वो पत्थर उठाकर के मारा करेंगे।
18
मेरे ख़्वाबों में इक शख़्स कई बरसों से
रह रहा यूं के हक़ीकत में रह रहा कोई।
19
कभी ना उड़ सका मैं लाख परिन्दों में रहा।।
ज़रा सी नीड़ की चाहत में बरगदों में रहा।।
किसी का बन के रहूं यह नहीं हुआ क्योंकि
मैं तुझसे दूर भी रहकर तेरी हदों में रहा।।
20
उसकी सर्दी की ज़रूरत था मैं
फेंक देगा कभी कम्बल की तरह।
21
नक्शे-पा मेरे सहर के बाद आयेंगे नज़र
शब जहां मैंने गुज़ारी इक सड़क जाने को है।
22
किस अन्दाज़ से किसने-किसे छुआ होगा।।
ये जानता हूं अन्धेरे में क्या हुआ होगा।।

गीत जो गा रहा मछली की आज़ादी के
शर्तिया ज़ेब में उसके ही केंचुआ होगा।।

तूने इल्ज़ाम..

तूने इल्ज़ाम बचा रक्खा है।।
कैसा ईनाम बचा रक्खा है।।

उसके आते ही चुप हुई महफ़िल
कैसा कोहराम मचा रक्खा है।।

उसने सब नाम लिये चुन-चुन कर
मेरा ही नाम बचा रक्खा है।।

और सब मस्ज़िदें सलामत हैं
सबको ही राम बचा रक्खा है।।

अब अजायबघरों में पुतलों के
हमने हुक्काम सज़ा रक्खा है।।

हो खुशगवार सा मौसम ..

हो खुशगवार सा मौसम मुझे पुकारा करो।।
मैं तेरी ज़ुल्फ़ नहीं हूं मगर संवारा करो।।

जिसकी सीढ़ी से कभी गिर के मरूं ऐ हमदम
उसी मंज़िल की तरफ़ हल्का सा इशारा करो।।

तुम मेरा ख़्वाब हो या कोई हक़ीकत जानां
कुछ हमसे बात करो, कुछ कहा हमारा करो।।

अगर तुम्हारे नहीं हम तो और किसके हैं
फिर ये सवाल कभी हमसे ना दुबारा करो।।

आपकी इन चितवनों में..

आपकी इन चितवनों में देखना।।
मोर-नर्तन उपवनों में देखना।।

दोस्तों की देख ली है दोस्ती
अब बचा क्या दुश्मनों में देखना।।

साधते हैं वो अदाएं क़त्ल की
यूं नहीं है दर्पणों में देखना।।

तल्ख़ है इन रतजगों के दौर में
दीवार अपने आंगनों में देखना।।

रात है तो रोशनी की बात कर
रोशनी मत जुगनुओं में देखना।।

छोड़ते हैं आप हमको किसलिए
सुख मिलेगा बंधनों में देखना।

बेमुरव्वत कर रहा है..

बेमुरव्वत कर रहा है आज जो सारे हिसाब।।
दोस्त होगा, दोस्तों का होता है यूं ही ज़वाब।।

है ज़रा सी पै मेरी फ़ितरत में तू मत माफ़ कर
तोड़ देते हैं बनाने वाले ही बर्तन ख़राब।।

और झुकना है ज़रा सा और झुकना है ज़रा
अब तो रहने दे के मुझमें ख़त्म होने को है आब।।

मुझको जो बख़्शा है मालिक ने उसी का शुक्रिया
पेट में फ़ाकाक़शी तो चेहरे पे थोड़ा रुआब।।

आईने की अब गवाही झूठ की तहरीर है
देखने वालों ने देखा था कभी मेरा शबाब।।

Monday 28 September 2009

मेरी पुरनम कहानियां

मेरी पुरनम कहानियां सुनकर।।
दिल की डूबें न कश्तियां सुनकर।।

तेरे चर्चे में फूलों की खुशबू
पास आती हैं तितलियां सुनकर।।

दूल्हा बाज़ार से ख़रीदेंगे
क्या कहेंगी ये बेटियां सुनकर।।

वह मुझे याद कर रही होगी
लोग टोकेंगे हिचकियां सुनकर।।

सच भी उसको लगे बहाने सा
ख़त्म होंगी न दूरियां सुनकर।।

तुम्हें देख मुझको ..

तुम्हें देख मुझको पता ये चला है।।
दिल भी ये मेरा बहुत मनचला है।।

क़रीबी का मतलब जो जाना नहीं
वो क्या बताये कि क्या फ़ासला है।।

ये आंसू, ये आहें, ये ग़मगीन रातें
उल्फ़त के तोहफ़ों का सिलसिला है।।

किसी ने लिखा है तुझे ख़त गुलाबी
मगर हाल मेरे ही दिल का लिखा है।।

तू मुझे चाह ले ..

तू मुझे चाह ले संवर जाऊं।।
या कहे टूट कर बिखर जाऊं।।

रास्ता कौन मेरा तकता है
लौटकर किसलिए मैं घर जाऊं।।

तू सफ़र में हो तो ये मुमकिन है
मैं संग-ए-मील सा गुज़र जाऊं।।

जो न पूछे तो तेरा ज़िक्र करूं
कोई पूछे तो मैं मुकर जाऊं।।

इश्क़ का मर्ज़ लाइलाजी है
चाहे अमृत पिऊं, ज़हर खाऊं।।

फिर गली से..

फिर गली से वो गुलबदन निकले।।
लूटने दिल को राहजन निकले।।

तेरी नज़रें छिपीं न हुस्न छिपा
झीने-झीने ये पैरहन निकले।।

फिर किसी क़त्ल का इरादा है
बन के मासूम जानेमन निकले।।

जान देते हैं जिस दुपट्टे पर
मेरी क़िस्मत अगर कफ़न निकले।।

और जो भी हो..

और जो भी हो तू हसरत लिखना।।
कहीं मुझको न आज ख़त लिखना।।

नाम मेरा ना कहीं लिख बैठो
कभी बेसाख़्ता ही मत लिखना।।

अफ़रा-तफ़री है ज़माने में बहुत
इसमें आसां नहीं फ़ुरसत लिखना।।

इस हथेली पे लिख चुका लिक्खा
तू न फिर से मेरी किस्मत लिखना।।

किसी सूरत भी..

किसी सूरत भी जो ताल्लुक़ थे, पुराने न बने।।
लोग तो कहते ही रहे फिर भी फ़साने न बने।।

बेवफ़ा तू है मेरी आंख के अश्क़ों का सबब
लाख चाहा न कहें, फिर भी बहाने न बने।।

तुझको चाहा, तुझको पूजा, जाने जां माना
हमको डर है कि कहीं और दिवाने न बनें।।

किसी मंज़िल की रहती तलाश है मुझको
मैं न रुक पाया, कभी अपने ठिकाने न बने।।

तीरगी का है सफ़र ..

तीरगी का है सफ़र रुक जाओ।।
बोले अनबोले हैं डर रुक जाओ।।

तुम्हारे पास वक़्त कम हो तो
ले लो तुम मेरी उमर रुक जाओ।।

जश्न में उस तरफ़ क्यों फैले हैं
खूं से तर पंछी के पर रुक जाओ।।

हर तरफ़ आजकल दुकानें हैं
कोई मिल जाये जो घर रुक जाओ।।

तुम तो रहते हो बिखरे-बिखरे ही
कहां जाते हो संवर रुक जाओ।।

बातों-बातों ही..

बातों-बातों ही में ढली होगी।।
वो रात कितनी मनचली होगी।।

तेरे सिरहाने याद भी मेरी
रात भर शम्अ सी जली होगी।।

जिससे निकलेगा आफ़ताब मेरा
वो तेरा घर, तेरी गली होगी।।

तू है नज़दीक तो दूधिया रंगत
शाम तुझ बिन तो सांवली होगी।।

ख़्वाब जैसा ही..

ख़्वाब जैसा ही वाक़या होता।।
तू मेरे घर जो आ गया होता।।

जिन ख़तों को संभाल कर रक्खा
काश उनको मैं भेजता होता।।

ख़्वाब के ख़्वाब देखने वाले
आंख से भी तो देखता होता।।

रफ्ता-रफ्ता गुज़र गये मंज़र
मैं खड़ा हूं धुंआ-धुंआ होता।।

ऐसी सूरत तलाश करता हूं
आप मेरे, मैं आपका होता।।

दिल में सौ तोहमतें..

दिल में सौ तोहमतें ग़िला रखिये।।
चाहे जैसा हो सिलसिला रखिये।।

लूटने वाला हंसी है इतना
जां से जाने का हौसला रखिये।।

दिल की खिड़की अगर खुली हो तो
दिल के चारों तरफ़ क़िला रखिये।।

और क्या आजमाइशें होंगी
पास आकर भी फ़ासला रखिये।।

फिर भी तनहाइयां सतायेंगी
आप चाहे तो क़ाफिला रखिये।।

वो मेरे ख़त मेरी इबादत हैं
मत ख़जाने से अलहदा रखिये।।

हम तो उड़ जायेंगे परिन्दों से
याद में कोई घोंसला रखिये।।

देकर मिलने का..

देकर मिलने का भरोसा उसने।।
मुझको छोड़ा न कहीं का उसने।।

दूरियां और बढ़ा दी गोया
फ़ासला रख के ज़रा सा उसने।।

मेरे किरदार-ए-वफ़ा को लेकर
सबको दिखाया तमाशा उसने।।

हमने दिल रक्खा था लुटा बैठे
हुस्न पाया है भला सा उसने।।

मेरे आगे वो बोलता ही नहीं
सबसे क्या-क्या नहीं कहा उसने।।

ख़त मुहब्बत के रोज़ लिखता था
उसपे लिक्खा नहीं पता उसने।।

ऐब सारे छिपा के ..

ऐब सारे छिपा के रहता है।।
घर को जो भी सजा के रहता है।।

किसी बेटी का बाप ही होगा
कैसे नज़रें झुका के रहता है।।

उसको अरसे से ये ख़बर ही नहीं
वो मेरा दिल चुरा के रहता है।।

सुबह होते ही उड़ नहीं जाना
तू परिन्दों सा आ के रहता है।।

और कुछ हो न हो मुसीबत में
मुतमइन कुछ दुआ से रहता है।।

दोनों जहां तुम्हीं में ..

दोनों जहां तुम्हीं में सनम देखता हूं मैं।।
ले फिर से कह रहा हूं तुझे चाहता हूं मैं।।

मैं छू के देखता हूं हक़ीकत को आजकल
तुम इक ख़याल भी हो जिसे सोचता हूं मैं।।

आओगे बारहा ये यक़ी है मेरे क़रीब
मंज़िल तेरी नहीं, न सही, रास्ता हूं मैं।।

कितना अज़ीब है ये उल्फ़त का फ़ल्सफा
जिसे दिल में रख लिया है उसे खोजता हूं मैं।।

और कोई तू चाहे..

और कोई तू चाहे सज़ा दे।।
तुझको भुलाऊं कैसे बता दे।।

तेरे बिना जी लगता नहीं है
जो भी हुआ है उसकी दवा दे।।

झूठी है दुनिया झूठे रिश्ते
कोई फ़साना तू भी सुना दे।।

मुझसे तो दुश्वार है होना
तू ही यादें अपनी मिटा दे।।

जीने मरने के सहारे..

जीने मरने के सहारे और हैं।।
हम नहीं हैं तुम्हारे और हैं।।

आपने चाहा ये केवल ख़्वाब था
नींद टूटी तो नज़ारे और हैं।।

इश्क़ में हां कहा या ना कहा
ये दरीचें हैं दीवारें और हैं।।

सब ही दामन में तेरे मुझको दिखे
झूठ कहते हैं सितारे और हैं।।

तुझको पाने की..

तुझको पाने की भला कब दुआ नहीं करता।।
फिर भी चाहे से सब कुछ हुआ नहीं करता।।

जो मुझसे खेल रहा है वो इक फ़रिश्ता है
वो मेरे ख़्वाबों को मुझसे ज़ुदा नहीं करता।।

मैं उसके साथ चला हूं ख़ता मेरी ये है
जो समझता है कि कोई ख़ता नहीं करता।।

हुस्नवाला है तो मग़रूर भी होगा बेशक़
कभी-कभार क्या, अक्सर वफ़ा नहीं करता।।

कितना खोया है अभी और कितना खोयेगा
दिल के सौदे में तो कोई नफ़ा नहीं करता।।

अपना लिखता है मुकद्दर वो अपने हाथों से
रुख हवाओं का जो भी पता नहीं करता।।

Sunday 27 September 2009

कोई मुश्क़िल तो नहीं..

कोई मुश्क़िल तो नहीं यूं करना।।
उनसे चुप रह के गुफ़्तगू करना।।

उसको मैं देखकर ही जी लूंगा
उसको तुम मेरे रूबरू करना।।

तुम मुझे आज़मा लो जी भर के
फिर मैं तुमसे जो भी कहूं करना।।

सदा देती हैं तमन्नाएं मुझे
याद मैं कैसे रोक दूं करना।।

अपने को खो के मैं..

अपने को खो के मैं पा लूं उसको॥
तुम कहो कैसे मना लूं उसको॥

मैं उसे चाहता हूं जन्मों से
कभी पूछे तो बता दूं उसको॥

ढाई आखर वो अगर पढ़ ले
पोथियां दिल की दिखा दूं उसको॥

राह बन जाये तो चलूं उस पर
गीत बन जाये तो गा लूं उसको॥

चंद अफ़सुर्दा ..

चंद अफ़सुर्दा हिसाबों की सही।।
बात टूटे हुए ख़्वाबों की सही॥

जिसमें ख़त आजकल नहीं आता
मेरे उन भेजे क़िताबों की सही।।

अपने रिश्ते में तो महक न रही
खुशबुएं सुर्ख गुलाबों की सही।।

मेरी हसरत को मिटाने वाले
तेरे मासूम ज़वाबों की सही।।

जी में आता है इन्तज़ार करूं
रुत न लौटेगी बहारों की सही।।

तूने ली है ज़रूर अंगड़ाई..

तूने ली है ज़रूर अंगड़ाई॥

तेरी खुशबू लिए हवा आई॥


इश्क़ वालों से दूर ही रहना

नाप लेते हैं दिल की गहराई॥


शोर खामोश सा कर देता है

कितनी बातें करे है तन्हाई॥


फ़क्त किरदार बदल जाते हैं

सारी बातें यहां कि आजमाई॥


ख़्वाब का मुझको इन्तज़ार रहा

नींद मुझको न रात भर आई॥

वो मुझसे खेलेगा..

वो मुझसे खेलेगा, नाकाम करके छोड़ेगा॥

नया खिलौना कोई फिर से हाथ ले लेगा॥


अभी यक़ीं न होगा बाद मेरे दुनिया में

तेरा ठिकाना कोई मेरे घर से पूछेगा॥


कोई अफ़सानानिगारी नहीं कसम ले लो

मैं बुत बना हूं कि वो शख़्स मुझे छू लेगा॥


नहीं वो ग़म की तासीर से वाकिफ़ बेशक़

कैसे मुमकिन है कोई ज़ार-ज़ार रो लेगा॥


मैंने ये सोच के दस्तक ही नहीं दी दर पे

मेरी गली की तरफ़ खिड़कियां वो खोलेगा॥

इश्क़ तुमसे है..

इश्क़ तुमसे है छिपाना क्या है॥

लाख फिर रोके ज़माना क्या है॥


जिसपे कुछ नाम लिखें हैं जुड़वां

रिश्ता उस दर से पुराना क्या है॥


दो घड़ी मिल के कहीं खो जाना

साथ इस तरह निभाना क्या है॥


आ कभी देखने की ख़ातिर ही

अब तेरे बिन ये दीवाना क्या है॥


उसकी तिरछी नज़र से सीखे कोई

तीर कैसा हो, निशाना क्या है


मां के साये में रह लिया जो भी

जानता है कि ख़जाना क्या है॥

फूल जैसा है..

फूल जैसा है कुछ महका हुआ॥

तू नहीं है पर तेरा धोखा हुआ॥


जीतने वाला भी रोता है बहुत

ये मुहब्बत का क़िला ऐसा हुआ॥


हम ज़ुदा हैं पर ज़ुदा इतने नहीं

मेरी मंज़िल अब तेरा रस्ता हुआ॥


मेरा इक क़िरदार था गुम हो गया

जब तुम्हारे हाथ का सिक्का हुआ॥


वो न जाने कैसे सच कहकर गया

चाल से लगता नहीं बहका हुआ॥


हर तरफ़ दीवार सी है और तू

इक दरीचे की तरह खुलता हुआ॥


इसकी उसकी बात सुन लूं पहले मैं

अपनी भी कहूंगा जो मौका हुआ॥