क्या ख़बर उसका ठिकाना क्या है।।
मेरे दिल तक पहुंच नहीं पाया
उसका पैग़ाम रवाना क्या है।।
एक उलझन सी बनी रहती है
मिलने जुलने का बहाना क्या है।।
डॉ.अभिज्ञात की ग़ज़लें
घने अंधेरे में भी रोशन-रोशन मेरी शब
तेरे अश्कों से भींगे ख़त जलते रहते हैं।
हज़ारों सपनों का सबसे बड़ा खजाना है
मुझसे औलाद की गुल्लख नहीं तोड़ी जाती।
तूने ली है ज़रूर अंगड़ाई॥
तेरी खुशबू लिए हवा आई॥
इश्क़ वालों से दूर ही रहना
नाप लेते हैं दिल की गहराई॥
शोर खामोश सा कर देता है
कितनी बातें करे है तन्हाई॥
फ़क्त किरदार बदल जाते हैं
सारी बातें यहां कि आजमाई॥
ख़्वाब का मुझको इन्तज़ार रहा
नींद मुझको न रात भर आई॥
वो मुझसे खेलेगा, नाकाम करके छोड़ेगा॥
नया खिलौना कोई फिर से हाथ ले लेगा॥
अभी यक़ीं न होगा बाद मेरे दुनिया में
तेरा ठिकाना कोई मेरे घर से पूछेगा॥
कोई अफ़सानानिगारी नहीं कसम ले लो
मैं बुत बना हूं कि वो शख़्स मुझे छू लेगा॥
नहीं वो ग़म की तासीर से वाकिफ़ बेशक़
कैसे मुमकिन है कोई ज़ार-ज़ार रो लेगा॥
मैंने ये सोच के दस्तक ही नहीं दी दर पे
मेरी गली की तरफ़ खिड़कियां वो खोलेगा॥
इश्क़ तुमसे है छिपाना क्या है॥
लाख फिर रोके ज़माना क्या है॥
जिसपे कुछ नाम लिखें हैं जुड़वां
रिश्ता उस दर से पुराना क्या है॥
दो घड़ी मिल के कहीं खो जाना
साथ इस तरह निभाना क्या है॥
आ कभी देखने की ख़ातिर ही
अब तेरे बिन ये दीवाना क्या है॥
उसकी तिरछी नज़र से सीखे कोई
तीर कैसा हो, निशाना क्या है
मां के साये में रह लिया जो भी
जानता है कि ख़जाना क्या है॥
फूल जैसा है कुछ महका हुआ॥
तू नहीं है पर तेरा धोखा हुआ॥
जीतने वाला भी रोता है बहुत
ये मुहब्बत का क़िला ऐसा हुआ॥
हम ज़ुदा हैं पर ज़ुदा इतने नहीं
मेरी मंज़िल अब तेरा रस्ता हुआ॥
मेरा इक क़िरदार था गुम हो गया
जब तुम्हारे हाथ का सिक्का हुआ॥
वो न जाने कैसे सच कहकर गया
चाल से लगता नहीं बहका हुआ॥
हर तरफ़ दीवार सी है और तू
इक दरीचे की तरह खुलता हुआ॥
इसकी उसकी बात सुन लूं पहले मैं
अपनी भी कहूंगा जो मौका हुआ॥